समझी बयार का झोंका है। पलक झपकते देखा तुम्हें , समझी कोई स्वपन है । चाँद की रोशनी में , अनगिनत तारों की टिमटिमाहट में , तुम्हारा चेहरा सूर्य सामान चमका, समझी सुबह की किरण हो तुम । सपनों की दुनिया अनोखी है , कभी लगे सच और कभी धुंध। पर मैं जानती हूँ , कल रात सिरहाने , आये थे तुम।