07 अक्तूबर 2013

कल रात सिरहाने

कल रात सिरहाने ,
आये थे तुम,
समझी बयार का झोंका  है।

पलक झपकते देखा तुम्हें ,
समझी कोई स्वपन है ।

चाँद की रोशनी में ,
अनगिनत तारों की टिमटिमाहट में ,
तुम्हारा चेहरा सूर्य सामान चमका,
समझी सुबह की किरण हो तुम ।

सपनों की दुनिया अनोखी है ,
कभी लगे सच और कभी धुंध।

पर मैं  जानती हूँ ,
कल रात सिरहाने ,
आये थे तुम।