अगर मैं पुष्प होती ,
तो तुम्हारी राहों में बिछ जाती ,
मेरी सुगंध बस तुम तक ही आती।
अगर मैं अश्रु होती ,
तो तुम्हारे नयनों से ख़ुशी बन छलकती ,
अगर मैं ब्यार होती ,
तो प्राणवायु बन तुम्हें सहलाती ,
जहाँ भी जाते तुम्हारा साथ मैं पाती।
अगर मैं धरा होती ,
तो तुम आसमान का काजल ,
मुझ पर बरस जाते तुम बन बादल।
अगर मैं वंदना होती ,
तो तुम्हारा ही गुणगान गाती ,
तो तुम्हारा ही गुणगान गाती ,
धैर्य और सयंम से तुम्हें सजाती।
अगर मैं नदिया होती ,
तो तुम मेरे प्रशांत ,
तुम में ही समां जाते मेरे दिन - रैन।
Beautiful poem.
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