क्या कभी इंसान,
माप सकेगा एक बच्चे के,
होंठों की मुस्कान ?
पहुँच चुका है इंसान,
चाँद , मंगल और गगन अविराम,
पर क्या कभी पहुंचेगा,
सच की गहराई में उसका विमान ?
बना रहे हैं आज हम ,
ऊँची -ऊँची ईमारतें,
बाँध रहें हैं दरिया का प्रवाह।
पर कब बांधेंगे हम,
समाज की खोखली जड़ों का प्रभाव ?
क्या कभी दुनिया पुनः ,
बनेगी सुख का परिणाम ?
Child is the father of man...
जवाब देंहटाएंsukh ka parinaam... sukh toh khud hamara parinaam hai...
the pursuit of happiness. keep writing..