हाथ छूट रहा है हाथों से,
जीवन पर्यन्त साथ निभाना था l
क्यूँ डूब रहे हो दुविधा में?
आशाओं की कश्ती पर हम सवार थे l
कैसे विश्वास दिलाऊँ तुम्हे, सब ठीक होगा l
स्वयं ही बह रही हूँ आशाविहीन सी l
परन्तु पुनः जागृत होंगे हम,
उभरेंगे इन लहरों की अठखेलियों से ऊपर l
थाम लो मेरा हाथ , फिर अपने हाथों संग,
चलो चलें वहां, जहाँ है जीवन का हर रंग l
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आभार है मेरा