जब भी वक्त के पत्तों की सनसनाहट
सुननी चाही,
फिर पढ़े मैंने तुम्हारे खत
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जब रात की चांदनी में भीगी
नींद की चादर,
तब-तब याद आये तुम्हारे खत
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एक सागर लहरा उठा फिर से,
जिसमें सिमटी थी मीठी यादें ,
जब भी खोले तुम्हारे खत
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गेहूं की बाली का सुनहरापन, मंदिर की आरती का पावनपन ,
बारिश से सनी मिटटी की खुशबू, पुनः महकाती मन का आँगन ,
जब- जब पढ़े तुम्हारे खत
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दिए की लौ की तरह
प्रज्जवलित,
मेरे हृदय ने सजों के रखें है
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तुम्हारे खत l
बहुत खूब कहा है. मन की
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