18 अप्रैल 2014

तुम्हारे खत

जब भी वक्त के पत्तों की सनसनाहट सुननी चाही,
फिर पढ़े मैंने तुम्हारे खत l 

जब रात की चांदनी में भीगी नींद की चादर,
तब-तब याद आये तुम्हारे खत l 

एक सागर लहरा उठा फिर से, जिसमें सिमटी थी मीठी यादें ,
जब भी खोले तुम्हारे खत l 

गेहूं की बाली का सुनहरापन, मंदिर की आरती का पावनपन ,
बारिश से सनी मिटटी की खुशबू, पुनः महकाती मन का आँगन ,
जब- जब पढ़े तुम्हारे खत l 

दिए की लौ की तरह प्रज्जवलित,
मेरे हृदय ने सजों के रखें है --------------
                                                                   तुम्हारे खत l 




  

1 टिप्पणी:

आभार है मेरा