लहराती चली है पवन ,
कुछ कह रही है तुझसे यह मेरे मन,
वह जिसके स्वपन संजोये तूने ,
अब बिफरे - बिफरे पड़े है सूने - सूने ।
गाता - बहता पानी ,
सुना रहा है उसकी कहानी,
जिस संग डोर बंधी है मन की ,
पर जीवन में है उसी की कमी।
सप्त रंगी धनुष यह ,
जोड़े धरती- आकाश की लय ,
जा उसके साथ तू मन ,
शायद उस ओर मिले उसका दर्पण।
मन तो बांवरा है ,
विचरे भंवरा बन,
उसकी चाह रखता है ,
जो खो चुका है........................
इक दर्द बन.…………….......
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आभार है मेरा