जब भी इन गलियारों से गुजरती हूँ ,
कुछ याद आता है।
वह बातें , वह रूठना - मानना ,
और फिर कुछ बना बहाना ,
तुम्हारा मुझे रिझाना।
उस बागीचे के कोने को देख ,
कुछ याद आता है।
फूल जैसे पूछ रहे हों तुम्हारा पता ,
तुम्हारी यादें ज्यूँ वृक्षों पर लिपटी लता ,
मधुर गीत कोई गुनगुनाये ,
तुम्हारे शब्दों की लड़ी ,
वक्त की रुकती-थमती घड़ी ,
जिसकी तुमसे जुड़ी है कड़ी।
देखूं जब बादलों को उड़ते ,
कुछ याद आता है।
तुम्हारा दर्द और कराहना ,
कभी रोना और चहचहाना ,
उम्मीद है स्मरण रखोगे बिताये पल, जब भी तुम इस और आना।
यूँ ही बस कुछ याद आता है...........................