समय - समय की बात है ,
जीवन कभी दिन ,तो कभी रात है।
कुछ उम्मीदें , क्षण ख़्वाब,
जो थे मात्र अवसाद ,
आज उफन रहें हैं ज्यों प्रभात।
समय का ही चक्र है,
कल जिस की चाह थी,
छिप गयी थी जो वेदना , पीले पत्तों में ,
वर्तमान में फूट रहें हैं नव पल्लव बन।
अब यह पल्लव अंकुरित होंगे अवश्य,
मिलेगी उन्हें स्नेह की वर्षा, भावनाओं की खाद,
लेकिन उनमें रहेगा एक कड़वा - मीठा स्वाद।
समय का चक्र बढ़ रहा है ,
सूर्य भांति चढ़ रहा है।
परन्तु , अंतर है संवेदनाओ का।
सच में जीवन तो चलता ही है , संवेदनाएं ज़रूर बदल जाती हैं....
जवाब देंहटाएंबेजोड़ रचना