10 दिसंबर 2014

समय की परिधि

समय - समय की बात है ,
जीवन कभी दिन ,तो कभी रात है।

कुछ उम्मीदें , क्षण ख़्वाब,
जो थे मात्र अवसाद ,
आज उफन रहें हैं ज्यों प्रभात।

समय का ही चक्र है,
कल जिस की चाह थी,
छिप गयी थी जो वेदना , पीले पत्तों में ,
वर्तमान में फूट रहें हैं नव पल्लव बन। 

अब यह पल्लव अंकुरित होंगे अवश्य,
मिलेगी उन्हें स्नेह की वर्षा, भावनाओं की खाद,
लेकिन उनमें रहेगा एक कड़वा - मीठा स्वाद। 

समय का चक्र बढ़ रहा है ,
सूर्य भांति चढ़ रहा है। 

परन्तु , अंतर है संवेदनाओ का। 



1 टिप्पणी:

  1. सच में जीवन तो चलता ही है , संवेदनाएं ज़रूर बदल जाती हैं....
    बेजोड़ रचना

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आभार है मेरा