जब भी इन गलियारों से गुजरती हूँ ,
कुछ याद आता है।
वह बातें , वह रूठना - मानना ,
और फिर कुछ बना बहाना ,
तुम्हारा मुझे रिझाना।
उस बागीचे के कोने को देख ,
कुछ याद आता है।
फूल जैसे पूछ रहे हों तुम्हारा पता ,
तुम्हारी यादें ज्यूँ वृक्षों पर लिपटी लता ,
मधुर गीत कोई गुनगुनाये ,
तुम्हारे शब्दों की लड़ी ,
वक्त की रुकती-थमती घड़ी ,
जिसकी तुमसे जुड़ी है कड़ी।
देखूं जब बादलों को उड़ते ,
कुछ याद आता है।
तुम्हारा दर्द और कराहना ,
कभी रोना और चहचहाना ,
उम्मीद है स्मरण रखोगे बिताये पल, जब भी तुम इस और आना।
यूँ ही बस कुछ याद आता है...........................
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 27 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 29 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह! भावों की अतल गहराई।
जवाब देंहटाएंयादों का संसार सजाती सुंदर प्रस्तुति!!!
जवाब देंहटाएंबेटे पल अक्सर यूँ ही याद आते हैं ।भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसुमधुर यादें साथ ही रहती हैं
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