हर पल तुम्हें देखने की,
आदत हो गयी है।
तुम्हारी ही यादों में खो जाने की,
आदत हो गयी है।
बादल और चाँद में तुम्हें ढूंढने की,
आदत हो गयी है।
हर राह , हर मोड़ पर तुम्हें पाने की,
आदत हो गयी है।
कुछ लिखूं या न लिखूं ,
बस तुम्हारे बारे में लिखने की,
आदत हो गयी है।
क्या जाने कोई यह वेदना,
जहाँ तुम पास होकर भी दूर नहीं ,
और दूर होकर भी दूर नहीं।
अब तो बस इस तरह जीने की ,
आदत हो गयी है।
आदत हो गयी है।
तुम्हारी ही यादों में खो जाने की,
आदत हो गयी है।
बादल और चाँद में तुम्हें ढूंढने की,
आदत हो गयी है।
हर राह , हर मोड़ पर तुम्हें पाने की,
आदत हो गयी है।
कुछ लिखूं या न लिखूं ,
बस तुम्हारे बारे में लिखने की,
आदत हो गयी है।
क्या जाने कोई यह वेदना,
जहाँ तुम पास होकर भी दूर नहीं ,
और दूर होकर भी दूर नहीं।
अब तो बस इस तरह जीने की ,
आदत हो गयी है।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 27 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 29 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबस हर कह तुम ही तुम नज़र आते हो । प्रेम सिक्त सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंदूर होकर भी दूर नहीं, बहुत सुन्दर
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