क्या कभी मेरे हृदय की पीड़ा,
तुम समझ पाओगे?
और यदि समझ गए तो,
क्या उसे पुष्प की तरह सहलाओगे?
और यदि समझ गए तो,
क्या उसे पुष्प की तरह सहलाओगे?
मेरे अन्तःमन की वेदना,
क्या तुम पढ़ सकते हो?
और यदि पढ़ सके तो,
इसे कोई मधुर गीत सुनाओगे?
क्या इस कोलाहल के,
तुम तक तार पहुंचते हैं?
और यदि पहुंच गए तो,
क्या प्रशांत बन,उसको शांत करवाओगे ?
यही कुछ प्रश्न हैं मेरे,
क्या इनका उत्तर,
तुम मुझको दे पाओगे?
क्या तुम पढ़ सकते हो?
और यदि पढ़ सके तो,
इसे कोई मधुर गीत सुनाओगे?
तुम तक तार पहुंचते हैं?
और यदि पहुंच गए तो,
क्या प्रशांत बन,उसको शांत करवाओगे ?
क्या इनका उत्तर,
तुम मुझको दे पाओगे?
काश पीड़ा मापी जा सकती, काश सान्त्वना उसी प्रकार प्रेषित की जा सकती। सुन्दर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंयही तो महती प्रश्न हैं । जो हम चाहते उस तरह नहीं होता लेकिन उतना बुरा भी नहीं होता ।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगवार(१७-०८-२०२१) को
'मेरी भावनायें...'( चर्चा अंक -४१५९ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
गहन सृजन...।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन..
जवाब देंहटाएंअनुत्तरित प्रश्न..........!
जवाब देंहटाएंअति सुंदर प्रस्तुति आदरनीय💐💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरे भाव!
जवाब देंहटाएंऐसे प्रश्न, जिनके उत्तर समर्पण माँगते हैं। ये उत्तर देना आसान नहीं है...
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