धूप में ,छाओं में,
दौड़ती है,
जिंदगी।
जिंदगी।
कभी ग़मों का पुलिंदा लिए,
भटकती है,
जिंदगी।
भटकती है,
जिंदगी।
प्यासी आँखें पीती हैं पानी,
आसुओं की बौछार से ,
आसुओं की बौछार से ,
कहीं पेट की आग बुझाती,
चंद बातें ,
चंद बातें ,
बस ऐसे ही सरपट- सरपट चलती है,
जिंदगी।
जिंदगी।
शिकायत करे या बढ़ती जाये,
सोचती रहती है,
जिंदगी।
सोचती रहती है,
जिंदगी।
यहीं खिलखिलाती,
और मिट जाती है ,
जिंदगी।
और मिट जाती है ,
जिंदगी।
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जवाब देंहटाएंयही तो है जिंदगी कही धूप और छाया और कभी ख़ुशी और गम.... चलते जाना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है, शब्द और भाव का संयोजन सुन्दर लगा !
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