क्या दौड़ना ही इन्सान के जीवन का ध्येय है ?
इसी भागदौड़ में जीवन व्यय है।
कभी सोचे कि रुके एक पल को,
लेकिन फिर देखे आँखों के समक्ष गुजरते हुए अपने कल को।
संघर्ष करे आखिर कब तक ?
शायद सपनों की उड़ान पूरी न हो जब तक ।
हिम्मत क्षण - क्षण में जुटाये ,
दुःख हो या सुख ,फिर भी सुहाना राग गुनगुनाये।
विपरीत परिस्थितियों में मुस्कुराता है,
ह्रदय में बसे अपने भगवान को भी मानता है।
छिन्न - भिन्न हो जाये यदि आत्मसम्मान,
तो उसे फिर से शिखर तक पहुंचाना जानता है।
मन में स्नेह की कोमलता ,
कई विभिन्नताओं को समाये हुए है इंसान।
पतझड़ में वसंत की उम्मीद,
सर्दियों में धूप की आस ,
ऐसी ही प्रेरणाओं से खुद को जगाये इंसान।
हर विघ्न - बाधा से लड़ता जाये ,
कभी न थके ,
कभी न रुके ,
कभी न झुके,
जीवन पथ पर बढ़ता जाये इंसान।
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जवाब देंहटाएंThat is a wonderful poem. I didn't know you wrote in Hindi as well. It was only after I read your interview on PU that I visited this blog and read some of your poems in the mother tongue. Great job. :-)
जवाब देंहटाएं-HA