देख लिया है संसार सारा ,
है इच्छाओं की, पूर्ण धारा।
भटकता है इन्सान जन्मों के चक्र में,
कभी है कर्क , कभी है मकर में।
दुःख, सुख, भय भावनाओं से छूट कर ,
विलुप्त हो जाऊं ब्रह्माण्ड संग।
है इच्छाओं की, पूर्ण धारा।
ज्यों जल को चाहे है मीन,
त्यों ही होना चाहूँ मैं चिर निद्रा में विलीन।
भटकता है इन्सान जन्मों के चक्र में,
कभी है कर्क , कभी है मकर में।
तोड़ दूँ यह बंधन मोह का,
करूँ अभिनन्दन मोक्ष का।
विलुप्त हो जाऊं ब्रह्माण्ड संग।
एक अणु की शक्ति बन,
समग्र अर्थ सींच लूँ ,
चिर निद्रा के गर्भ में स्वयं को मैं खींच लूँ।
Dear Vandana you have said it beautifully in poetry what i feel in sentences. Very well said indeed. Maybe i'll come back and should hear more of what u say...if this is so beautiful i wonder how many more i have missed.
जवाब देंहटाएंThank you for stopping by at my post and leaving behind ur prints...thus leading me here. :) Felt nice ur page and you. :)
अंतिम सत्य तो यही है ... गहन भावयुक्त प्रस्तुति !!
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