दौड़ रहें हैं हम सब ,
बचपन से लेकर अब तक।
क्षण भर रुको तो जरा ,
देखो प्रकृति की छटा।
कितनी मनहर , कितनी निराली ,
चारों तरफ है हरियाली।
फुर्सत के पल ,
बीती कहानी से गए ढल।
ठहरो थोड़ा सा ,
महसूस करो बहती हवा।
शीतलता , मंद बयार की ,
हलकी - हलकी फुहार सी।
जिंदगी तो ढलती जाएगी ,
कभी भी सुकून न पायेगी।
तब अपने मन में झांको ,
ढूंढो उन मासूम पलों को ,
जब स्वछन्द विचरते थे ,
बिना किसी फ़िक्र यूँ ही बहते थे।
ज़रा रुको तो सही.…………………………………
बचपन से लेकर अब तक।
क्षण भर रुको तो जरा ,
देखो प्रकृति की छटा।
कितनी मनहर , कितनी निराली ,
चारों तरफ है हरियाली।
फुर्सत के पल ,
बीती कहानी से गए ढल।
ठहरो थोड़ा सा ,
महसूस करो बहती हवा।
शीतलता , मंद बयार की ,
हलकी - हलकी फुहार सी।
जिंदगी तो ढलती जाएगी ,
कभी भी सुकून न पायेगी।
तब अपने मन में झांको ,
ढूंढो उन मासूम पलों को ,
जब स्वछन्द विचरते थे ,
बिना किसी फ़िक्र यूँ ही बहते थे।
ज़रा रुको तो सही.…………………………………
रुको जरा --- भागते जीवन को सचेत करती और प्रक्रति के प्रति जोड़ने का सार्थक सन्देश देती सुंदर रचना ---
जवाब देंहटाएंबधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
ख़ास-मुलाक़ात
Where is peace... i wonder... in rest or in strife...
जवाब देंहटाएंall credits to you: http://gazalbharadwaj.blogspot.in/
जवाब देंहटाएं:) thanks