तुम्हारा नाम लेने से,
डरती हूँ,
की कोई ओर उसे सुन ना ले।
तुम्हारा ज़िक्र करने से,
डरती हूँ,
की कोई ओर तुम्हें जान ना ले।
तुम्हें महसूस करने से,
डरती हूँ,
की कोई ओर वह अहसास छीन ना ले।
तुम्हें याद ना करना,
यह मेरे बस की बात नहीं,
पर तुम्हें कोई ओर याद करे,
इस बात से डरती हूँ।
एक वरदान हो तुम,
ईश्वर का मुझ पर,
फिर भी ना जाने क्यों डरती हूँ ?
मेरे ही रहना तुम हमेशा,
यही ईश्वर से प्राथना करती हूँ ।
धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना वंदना जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंमन की सुंदर कामना से भरी रचना ------
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ।
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