उस फूल की पंखुड़ियों में,
आज भी लिपटी हुई तुम्हारी हंसी,
मेरे आसपास गूंजती है,
उसकी खुशबू,
तुम्हारी यादों की भीनी - भीनी महक लिए हुए,
इन सौम्य हवाओं में घुली हुई है।
जाने कितने वादे,
उस फूल के सूखे हुए,
मगर, अब सुर्ख होते डंठल में,
छुपे हुए हैं,
जो हर बार तुम्हारे होने का एहसास दिलाते हैं।
हाँ,
आज भी सहेज कर,
एक किताब में रखा है
उस फूल की तरह,
मैंने तुम्हें.........
अत्यंत ही अलौकिक, मार्मिक व भावपूर्ण रचना। बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंबसंतोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।