04 मार्च 2021

बस यूँ ही

अचानक यूँ चलते चलते इन सूनी राहों पर

लगा, कि शायद तुम मिल जाओ, 

न कोई सवाल, न कोई जवाब, 

            बस यूँ ही मुझे तुम मिल जाओ । 


तुम्हारे पैरों की छाप उन सूनी राहों  पर,

शायद, बता दे तुम्हारा पता,

न कुछ कहना, न कुछ सुनना,

बस यूँ ही मुझे तुम मिल जाना। 

             

 कभी उस राह पर, मेरी ओर आओ तो,

 अपने होने का ही सही,

 एक मीठा सा अहसास, मुझे दे जाना,

 बस यूँ ही मुझे तुम मिल जाना। 



 

 



6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही खूबसूरत रचना आदरणीया। बधाई स्वीकार करें।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 27 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 29 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. जिस रंग का टेक्स्ट है , उसके कारण पढ़ नहीं पा रहे ।

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  5. बहुत सुंदर भावों से सजी लाजवाब कृति।

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आभार है मेरा