मैं काँच का मोती हूं,
तपा हूं चाहे अग्नि में,
पर कोमल मेरी काया है I
मुझे सहेज रखना हथेली पर,
गिरा तो छिन्न-भिन्न हो जाऊंगा,
टुकड़े मेरे कण जैसे, कभी जोड़ नहीं पाओगेI
मैं तुम में ही समाया हूं,
तुम्हारे वचनों में ,तुम्हारे शब्दों में,
तुम्हारे भावों में जड़ा हुआ, मैं कांच का मोती हूं I
एक बार जो फिसला हाथ से,
तो रोक ना मुझको पाओगे,
यदि सत्य वचन जड़ा हुआ,
तो तारों सा आकाश में जगमगाता हुआ मुझे पाओगेI
यदि असत्य जड़ा हुआ,
तो किसी हृदय की पीड़ा बन जीवन भर दुख पाओगेI
हां, मैं काँच का मोती हूं,
तुम्हारे मन में समाया हुआ
आंच में तपा
, अग्नि में जला
I
sach hai :) Aur sundar bhi.
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