अक्षरों की प्यास अधूरी है ,
पास हूँ फिर भी कुछ दूरी है l
है चाँद की प्याली में अमृत ,
लेकिन मन जाने क्यूँ है अतृप्त l
पास हूँ फिर भी कुछ दूरी है l
है चाँद की प्याली में अमृत ,
लेकिन मन जाने क्यूँ है अतृप्त l
इंद्रधनुषी बाँध पर,
जा पहंचे स्वप्निल स्वर l
अरुणिमा का लाल रंग,
जीवन भर न रहेगा संग l
ढलती धूप सी उम्र यह,
नदिया समान बह ,
पहुंचेगी अपने सागर तक कभी l
पर फिर भी ,
अक्षरों की प्यास,
अधूरी है अभी ,
पास हूँ फिर भी,
कुछ दूरी है अभी l
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आभार है मेरा