जब- जब मैं खोई काली स्याह रात में,
या घबरा गई किसी अनकही बात से,
तब- तब तुमने ही तो राह दिखाई l
लहरों के बीच तैरते हुए,
घने जंगलों में विचरते हुए,
तुमने ही तो थामा मेरा हाथ l
कभी लगा कैसे होगा यह सफ़र तय,
सताने लगा एक अदृश्य भय ,
तब तुमने ही तो दिया मुझे अभय l
तूफानी ठंडी हवाएँ,
जब बिखराने लगीँ मेरे स्वपन,
तब तुमने ही तो सहलाया मेरा दुखद वक्त l
या घबरा गई किसी अनकही बात से,
तब- तब तुमने ही तो राह दिखाई l
लहरों के बीच तैरते हुए,
घने जंगलों में विचरते हुए,
तुमने ही तो थामा मेरा हाथ l
कभी लगा कैसे होगा यह सफ़र तय,
सताने लगा एक अदृश्य भय ,
तब तुमने ही तो दिया मुझे अभय l
तूफानी ठंडी हवाएँ,
जब बिखराने लगीँ मेरे स्वपन,
तब तुमने ही तो सहलाया मेरा दुखद वक्त l
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आभार है मेरा