भूल चुकी थी जिस एहसास को,
उसे फिर से जगा के चली गयी।
बरसों से छिपे आसूं क्षण भर में छलक पड़े,
सूख चुके थे जो पहले,
उन्हें रुला के चली गयी।
मन की चंचलता इक कोने में दबी थी कहीं,
लाख रोका था मैंने लेकिन,
उसे उफ़ना के चली गयी।
यादों के बादल बरस गए कुछ ऐसे,
यादों के बादल बरस गए कुछ ऐसे,
सहेज के रखे थे जो पल,
उन पलों को बिखरा के चली गयी।
आज बारिश भिगा के चली गयी।
Bahut sundar abhivyakti..
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar prastuti barish ke bahane .....
जवाब देंहटाएंNice ..its feeling like a my life storytelling...
जवाब देंहटाएंबहुत जोरदारअभिव्यक्ति है
जवाब देंहटाएं