रात कहती है...........
जाने क्यों निकल आया बाहर ?
उसकी शीतलता स्वयं पाना चाहती हूँ,
तारों पे सवार हो, कहीं दूर जाना है,
पर वह तो स्वछंद है।
चकोरी भी टकटकी लगाये उसे देखे ,
क्यों दूँ उसे मैं अपना चाँद ?
मेरे अंधेरे को टिमटिमाता है ,वही अपनी लौ से।
कहा था मैंने चाँद से,
बादलों की सैर करेंगे।
पर मेरी कहाँ सुनता है वह,
एक ओट से झांकता रहता है छुप - छुप के।
चाँद कहता है.……....
मैं समस्त संसार का हूँ,
मुझे निहारे है जग सारा।
मैं तो सबका हूँ ,
न कि बस तुम्हारा।
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जवाब देंहटाएंmai toh sabka hun, na ki bas tumhara... loved it
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