28 जून 2018

वर्षा की बूँदें

टिप -टिप वर्षा की बूँदें,
     महसूस करो आँखें मूंदें। 

ज्यों मोती गिरते झर-झर,
     वैसे हैं बूंदों के स्वर। 

एक सुन्दर स्वपन जैसा,
     बूंदों का आवरण ऐसा। 

मधुर ध्वनि गूँजें जब, जब,
     नाच उठें झूम - झूम मयूर सब। 


वर्षा की इन बूंदों में ही,
     विलुप्त हो अब सूखा भी। 

धरती, जंगल, समग्र संसार,
     श्रद्धालु  इन बूंदों का अपार ।  



3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 29 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह , वर्षा ऋतु में ही पढ़ रहे ये आपकी कविता ।
    सारा संसार ही आभारी है इन बूंदों का ।
    बेहतरीन

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आभार है मेरा