टिप -टिप वर्षा की बूँदें,
महसूस करो आँखें मूंदें।
ज्यों मोती गिरते झर-झर,
वैसे हैं बूंदों के स्वर।
एक सुन्दर स्वपन जैसा,
बूंदों का आवरण ऐसा।
मधुर ध्वनि गूँजें जब, जब,
नाच उठें झूम - झूम मयूर सब।
वर्षा की इन बूंदों में ही,
विलुप्त हो अब सूखा भी।
धरती, जंगल, समग्र संसार,
श्रद्धालु इन बूंदों का अपार ।
महसूस करो आँखें मूंदें।
ज्यों मोती गिरते झर-झर,
वैसे हैं बूंदों के स्वर।
एक सुन्दर स्वपन जैसा,
बूंदों का आवरण ऐसा।
मधुर ध्वनि गूँजें जब, जब,
नाच उठें झूम - झूम मयूर सब।
वर्षा की इन बूंदों में ही,
विलुप्त हो अब सूखा भी।
धरती, जंगल, समग्र संसार,
श्रद्धालु इन बूंदों का अपार ।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 29 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह , वर्षा ऋतु में ही पढ़ रहे ये आपकी कविता ।
जवाब देंहटाएंसारा संसार ही आभारी है इन बूंदों का ।
बेहतरीन
शानदार..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..