जब विलीन हो हमारा स्वर,
ब्रह्माण्ड चक्र में ,
तब बन जाये वह स्वर : ईश्वर II
बस उसका ही सिमरन,
श्रद्धा जो हो नश्वर,
श्रद्धा जो हो नश्वर,
पा सकेंगे तब ही हम : ईश्वर II
जब मन का आंगन,
तपस्या रूपी फूलों से जाये भर,
तभी मिलेंगे हमें : ईश्वर II
स्वयं में खोजें,
हर कण में नाम धर,
पा जाएंगे उस दिन हम : ईश्वर II
भक्ति रस में डूबे,
हमरा पल - पल हर,
तब क्यों न मिलेंगे : ईश्वर II
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आभार है मेरा