यह दर्द इस दिल का एहसास बन चुका है ,
न हो तोह ढूँढू उसे , इतना ख़ास बन चुका है।
रह , रह कर उठती है टीस इन् जख्मों के बीच ,
क्या सुनु, क्या कहूँ , आखिर है वोह क्या चीज़?
हथेली की लकीरों का, है यह सारा खेल ,
न जाने अब किस जन्म में हो अपना मेल?
जहाँ भी जाओ ख़ुशी तुम्हारे संग हो,
मन में कल कल बहती उमंग हो।
मेरी लिखी कविताओं का सार हो तुम ,
कुछ मीठी यादों का आभार हो तुम,
और मुझे जो निखार दे, वोह श्रींगार हो तुम।
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आभार है मेरा