उत्पन्न हुआ था दूर कहीं
मरु भूमि का श्राप,
अत्याचारी,व्यभिचारी
मनुष्यों का एक पाप।
संचित कई असत्य वचनों और अन्यायों का संताप,
अंधकार की ओर ले जाए ऐसा
श्रापित विलाप।
धैर्यहीन, संवेदनाहीन कृत्यों का सूत्रधार,
अमानवीय छल-कपट से परिपूर्ण आधार।
समग्र संसार ग्रसित, कुंठित, कर रहा हाहाकार,
सहन नहीं कर सकते अब ओर यह
अभिशाप।
मुक्ति मिले, शीघ्र ही जग में सभी को,
प्रज्वलित हो धर्म की लौ,
मरु भूमि का श्राप ।