30 जून 2018

ईश्वर

जब विलीन हो हमारा स्वर,
ब्रह्माण्ड चक्र में ,
                                              तब बन जाये वह स्वर : ईश्वर II 

बस उसका ही सिमरन,
श्रद्धा जो हो नश्वर,
                                                 पा सकेंगे तब ही हम : ईश्वर II 

जब मन का आंगन,
तपस्या  रूपी फूलों से जाये भर,
                                                   तभी मिलेंगे हमें : ईश्वर II 

स्वयं में खोजें,
हर कण में नाम धर,
                                                   पा जाएंगे उस दिन हम : ईश्वर II 

भक्ति रस में डूबे,
हमरा पल - पल हर,
                                                 तब क्यों न मिलेंगे : ईश्वर II 





28 जून 2018

प्यारा बचपन

आसमान में कितने सारे
टिमटिमाते सितारे
जंगल में भी
झिलमिल करता
जुगनुओं के रूप में
उनका गुंजन 

सोचे बच्चे 
कि तारें कैसे 
नाचें ऊपर नीचे ?
कभी चमकते
कभी दमकते 
सहलाते आँखें मीचे 

बचपन की यही कहानी 
अब लगती अनजानी 
जाने कहाँ खो गयी बचपन की वह मौज 
अब जीवन बन गया है एक गहरी सोच !



वर्षा की बूँदें

टिप -टिप वर्षा की बूँदें,
     महसूस करो आँखें मूंदें। 

ज्यों मोती गिरते झर-झर,
     वैसे हैं बूंदों के स्वर। 

एक सुन्दर स्वपन जैसा,
     बूंदों का आवरण ऐसा। 

मधुर ध्वनि गूँजें जब, जब,
     नाच उठें झूम - झूम मयूर सब। 


वर्षा की इन बूंदों में ही,
     विलुप्त हो अब सूखा भी। 

धरती, जंगल, समग्र संसार,
     श्रद्धालु  इन बूंदों का अपार ।