29 जून 2015

तेरा ही नाम

सोते- जागते बस तेरा ही नाम लेती हूँ ,
जब डरती हूँ काली रात से,
तब तेरा ही नाम लेती हूँ। 

बादलों की चादर से छन के आये बारिश ,
भिगो दे मेरी हर ख्वाहिश,
पर हर ख्वाहिश की तकदीर में मैं,
तेरा ही नाम लिख देती हूँ। 



जन्म, पुनर्जन्म होते हैं क्या ?
मुझे नहीं पता। 
यदि होते हैं तो,
हर जन्म में तेरे ही नाम अपना यह जीवन लिख देती हूँ। 

कोई कुछ कहता नहीं मुझसे,
न ही कुछ पूछता है,
क्यूंकि जवाब में मैं,
तेरा ही नाम कह देती हूं,
सोते- जागते बस तेरा ही नाम लेती हूँ । 


27 जून 2015

नीलकंठ त्रिपुरारी


नीलकंठ त्रिपुरारी,
तेरी छवि निराली।

त्रिशूल हाथ में धरा,
हरे सबकी व्यथा।

गंगा को लपेटे,
कष्ट सभी के पी लेते। 

सर्प माला से सुसज्जित,
करते सभी का हित्त। 

नंदी की है सवारी,
समग्र सृष्टि तुम्हें प्यारी। 

मुण्डमाल की लड़ियाँ,
मुक्त करें मोहमाया की कड़ियाँ। 

चंदा का आभूषण,
चमके  हर क्षण - क्षण। 

शक्ति है अर्धांगिनी,
सदैव आपकी संगिनी। 

नीलकंठ त्रिपुरारी,
तेरी छवि निराली।


21 जून 2015

चाँद की शीतलता

चंदा इक ओर  बैठा,
आकाश में ,
टुकुर- टुकुर निहारे धरती को प्रकाश से,
पर यह प्रकाश उसने उधार लिया है सूर्य से,
फिर भी देखे इक टक सम्पूर्ण धैर्य से। 

गर्वान्वित हो सूर्य चमके,
ओर भी गर्माहट से ,
त्राहि - त्राहि  करे धरती उसकी हर आहट पे,
द्वेष, क्रोध, जलन का परिवेश निराला है,
जिसने भी पिया उसका ह्रदय ज्वलनशील ज्वाला है । 

वहीँ चंदा की शीतलता,
अनोखी है , शांत है,
पृथवी उसकी ठंडक में नितांत हैं। 

बने हम भी चाँद की ठंडक सा,
                   बहें मंद - मंद हवा की सुगंध सा ................... 





20 जून 2015

अगर तुम मेरे होते.........................

जीवन की कड़वाहट भी मैं पी लेती,
इस जहां के दर्द सह जाती,
काँटों से भी लिपट जाती,
अगर तुम मेरे होते। 

तुम्हारी पीड़ा को हर लेती,
अपने श्वांस में उसे भर लेती,
स्नेह की छाया कर देती,
अगर तुम मेरे होते। 

मेरी कविताओं को अर्थ मिल जाता,
भटकती हुई भावनाओं को,
स्पर्श मिल जाता,
अगर तुम मेरे होते। 

तुम्हारी यादों में,
एक नदिया की तरह बह रही हूँ ,
मुझे महासागर मिल जा जाता ,
अगर तुम मेरे होते। 


04 जून 2015

पृथ्वी की धुरी

चिर काल से निरंतर चल रही है,
एक ही समय चक्र की ताल पे,
कभी न रुके , कभी न सोये,
चलती रहे एक ही ताल पे। 

 ब्रह्मांड की कुंडलियों में,
असंख्य तारों के झुरमुटों में,
छिपी है इसकी कहानी,जो कहती है सबसे,
कि चल रही है धरा एक ही ताल पे। 



सौरमंडल चमकता है,
सूर्य के प्रकाश से,
जीवन की धारा बहती है पृथ्वी के प्रवाह से,
और चल रही है यह एक ही ताल पे। 

कहते हैं नीली चादर सी बिछी हुई,
दिखती है ब्रह्माण्ड से,
प्रकृती की गोद समाई  है इसी पर,
चल रही है जो एक ही ताल पे।