30 सितंबर 2014
22 सितंबर 2014
टूटे ख्वाब
टूटे -
टूटे ख्वाबों के
,
टुकड़े यहाँ- वहाँ हैं बिखरे हुए ,
इस आशा में पड़े हैं कि ,
कभी कोई उन्हें छुये।
राहगीर की नज़र पड़ी जब ,
उठाये उसने चंद टुकड़े,
बाकी रह गए यूँही बस ,
कुछ सिमटे , कुछ उखड़े -
उखड़े।
अनेक उड़ गए पवन संग ,
और जो बच गए पीछे ,
आँख मूँद सो गए ,
कभी कोई गुजरे वहां से तो शायद उन्हें वह सींचे।
सब को सब कुछ कहाँ मिला है ,
जीवन तो बस धोखा है ,
जीना है हर हाल में इसको ,
वैसे तो सब खाली है ,खोखला है।
16 सितंबर 2014
शिव स्वरुप
कण - कण में हैं शिव का वास ,
उन्हीं का नाम है हर प्राण ,हर शंवास।
सूर्य की पहली किरण समान ,
सबको देते वह वरदान।
दोपहर की ऊष्मा ,
उन्हीं की है दक्षता।
संध्या का लाल रंग ,
गाये शिव के ही प्रसंग।
रात्रि की कालिमा,
शिव के प्रकाश से श्वेत वस्त्र धरा करे।
शिव की ही वंदना, गूंजे चहुँ तरफ ,
जैसे कैलाश को सुसज्जित करे बरफ।
शिव नाम अखंड है ,
तांडव करें जब , तब धरा खंड- खंड है।
शिव को तुम सिमर लो ,
स्वयं में तुम ढाल लो।
शिव स्वरुप पूर्ण पावन ,
भिगोये जग को बन सावन।
12 सितंबर 2014
कौन हूँ मैं ?
तुम्हारे पथ पर पड़ी ,
चरण-धुली हूँ ,
छू कर तुम्हें पवित्र हो गई हूँ।
फिर भी पूँछू खुद से ----- आखिर कौन हूँ मैं ?
जीवन के पन्नों पर लिखी एक कविता हूँ ,
जो ऐसी स्याही से लिखी गयी ,
कि कुछ बारिश की बूंदे बहा ले जाएं।
फिर सोचती हूँ ----- आखिर कौन हूँ मैं ?
कई जन्मों से तुम्हारे इंतज़ार में बैठी,
मन में स्नेह संजोये ,
अनगिनत ख्वाबों में खोये।
यही सोचूं ----- आखिर कौन हूँ मैं ?
कभी धारा समान प्रवाहित थी,
कोलाहल से सुसज्जित ,
वर्तमान में निर्जला ।
तो ----- आखिर कौन हूँ मैं ?
अनकहे गीत की तरह हवा में बहती हूँ ,
बरसों पहले जो हकीकत थी ,
अब भूली - बिसरी स्मृति हूँ।
आखिर कौन हूँ मैं ?
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