22 सितंबर 2014

टूटे ख्वाब

टूटे - टूटे ख्वाबों के  ,
टुकड़े यहाँ- वहाँ हैं बिखरे हुए ,
इस आशा में पड़े हैं कि ,
कभी कोई उन्हें छुये। 

राहगीर की नज़र पड़ी  जब ,
उठाये उसने चंद टुकड़े,
बाकी रह गए यूँही बस ,
कुछ सिमटे , कुछ उखड़े - उखड़े। 


अनेक उड़ गए पवन संग ,
और जो बच गए पीछे ,
आँख मूँद सो गए ,
कभी कोई गुजरे वहां से तो शायद उन्हें वह सींचे। 

सब को सब कुछ कहाँ मिला है ,
जीवन तो  बस धोखा है ,
जीना है हर हाल में इसको ,
वैसे तो सब खाली है ,खोखला है। 




16 सितंबर 2014

शिव स्वरुप

कण - कण में हैं शिव का वास ,
उन्हीं का नाम है हर प्राण ,हर शंवास। 

सूर्य की पहली  किरण समान ,
सबको देते वह वरदान। 

दोपहर की ऊष्मा ,
उन्हीं की है दक्षता। 

संध्या का लाल रंग ,
गाये शिव के ही प्रसंग। 

रात्रि की कालिमा,
शिव के प्रकाश से श्वेत वस्त्र धरा करे। 

शिव की  ही वंदना, गूंजे चहुँ तरफ ,
जैसे कैलाश को सुसज्जित करे बरफ। 

शिव नाम अखंड है ,
तांडव करें जब , तब धरा खंड- खंड है। 

शिव को तुम सिमर लो ,
स्वयं में तुम ढाल लो। 

शिव स्वरुप पूर्ण पावन ,
भिगोये जग को बन सावन। 

12 सितंबर 2014

कौन हूँ मैं ?

तुम्हारे पथ पर पड़ी ,
चरण-धुली हूँ ,
छू कर तुम्हें पवित्र हो गई हूँ। 

फिर भी पूँछू खुद से ----- आखिर कौन हूँ मैं ?

जीवन के पन्नों पर लिखी एक कविता हूँ ,
जो ऐसी स्याही से लिखी गयी ,
कि कुछ बारिश की बूंदे बहा ले जाएं। 

फिर सोचती हूँ  ----- आखिर कौन हूँ मैं ?

कई जन्मों से तुम्हारे इंतज़ार में बैठी,
मन में स्नेह संजोये , 
अनगिनत ख्वाबों में खोये। 
यही सोचूं ----- आखिर कौन हूँ मैं ?

कभी धारा समान  प्रवाहित थी,
कोलाहल से सुसज्जित ,
वर्तमान  में  निर्जला  । 
तो ----- आखिर कौन हूँ मैं ?
   
अनकहे गीत की तरह हवा में बहती हूँ ,
बरसों पहले जो हकीकत थी ,
अब भूली - बिसरी स्मृति हूँ। 

आखिर कौन हूँ मैं ?