09 अप्रैल 2015

आज मैं नि:शब्द हूँ


आज मैं नि:शब्द हूँ
त्रस्त और स्तब्ध हूँ  

भिन्न भिन्न सवाल हैं

और कई बवाल हैं  

उठ  रहा तूफ़ान है 
गिर रहा मचान है  


क्यूँ दुःख हैं जीवन में ?
क्यूँ  सुख अनजान है ?

मोह माया से परास्त क्यूँ,
यह पूरा संसार है?

दे हमें मोक्ष तू ,
और मुक्ति की कामना  

कर हमारी दूर तू, 
यह सारी  यातना  

  
आज मैं नि:शब्द हूँ
त्रस्त और स्तब्ध हूँ