16 फ़रवरी 2015

जय महाकाल


कैलाश के विहारी ,
समग्र दुनिया तुमको प्यारी,
तुझे कोटि - कोटि प्रणाम,
तुम ही देते अनाम को नाम। 

सर्पमाला से सुसज्जित,
करते सब का हित,
तुझे कोटि - कोटि प्रणाम,
तुम में समाये चारों धाम। 

चन्द्रमा को मान दिया,
ललाट पर स्थान दिया,
तुझे कोटि - कोटि प्रणाम,
तुम में समाये चारों धाम। 

हस्त में त्रिशूल है,
तुझ में सभी मंत्रो का  मूल है, 
तुझे कोटि - कोटि प्रणाम,
जग में केवल सच्चा है शिव का नाम । 

11 फ़रवरी 2015

क्या हो तुम

अधरों पर छनकते स्वरों की लय,
हो तुम।

आँखों में बसे स्नेहिल स्वपन,
हो तुम।

निहारे जिसे  दर्पण एक टक वह मूरत ,
हो तुम। 

आकाश में उड़ती भावनाओं की डोर ,
हो तुम।

सुदूर दिशाओं में गूंजता पर्वतीय गीत ,
हो तुम।

मन में छिपी रहस्यमयी प्रीत ,
हो तुम।

लहरों पर उमड़ता सूर्य प्रकाश ,
हो तुम।

अचल , सम्पूर्ण  प्रशांत ,
हो तुम।

शांत हो ,
एकांत हो।

क्या व्याख्यान करूँ ,
क्या वर्णन करूँ ,
सरल हो ,
अविरल हो ,
फिर भी एक पहेली।

कभी भी शायद तुम्हें बता न सकूँ ,
कि मेरे लिए क्या हो तुम...............