24 दिसंबर 2013

ये पंखुड़ियाँ l

किंचित किंचित पंखुड़ियों पे,
एक अजब सी प्यास उठी ,
तुम्हारे प्यार कि कुछ बूंदों से,
जाने कब ये प्यास बुझी l 
पलक झपकते ही उड़ जाती ,
मंद - मंद पवन सी,
कभी यहाँ - वहाँ बलखाती,
ये पंखुड़ियाँ  l 
छूना चाहती है चाँद को,
उसकी ठंडी चाह को,
और कभी सूर्य कि ऊष्मा को  ,
ज्वलनशील उसकी देह को l 
किन्ही विचारों सी बस,
बिखरें इधर- उधर,
ये पंखुड़ियाँ l 
समेटना चाहूं ,
तो भी न सिमटें ,
ये तो बस , उड़ना चाहती है,
चहुँ और,
ज्यों तिनके l 

17 दिसंबर 2013

अभी .............

अक्षरों की प्यास अधूरी है ,
पास हूँ फिर भी कुछ दूरी है l 

है चाँद  की  प्याली में अमृत  ,
लेकिन मन जाने क्यूँ  है अतृप्त l 

इंद्रधनुषी बाँध पर,
जा पहंचे स्वप्निल  स्वर l 

अरुणिमा का लाल रंग,
 जीवन भर न रहेगा संग l 

ढलती धूप सी उम्र यह,
नदिया समान बह ,
पहुंचेगी अपने सागर  तक कभी l 

पर फिर भी ,
अक्षरों की प्यास,
अधूरी है अभी ,

पास हूँ फिर भी,
 कुछ दूरी है अभी l 

03 दिसंबर 2013

तुमने ही तो ...........

जब- जब मैं खोई काली स्याह रात में,
या घबरा गई किसी अनकही बात से,
तब- तब तुमने ही तो राह  दिखाई l 

लहरों के बीच तैरते हुए,
घने जंगलों में विचरते हुए,
तुमने ही  तो थामा मेरा हाथ l 

कभी लगा कैसे होगा  यह सफ़र तय,
सताने लगा एक अदृश्य भय ,

तब तुमने ही तो दिया मुझे अभय l 

तूफानी ठंडी हवाएँ,
जब बिखराने लगीँ  मेरे स्वपन,
तब तुमने ही  तो सहलाया  मेरा दुखद वक्त l 

02 दिसंबर 2013

आसपास हो तुम

हवाओं कि गर्माहट से,
पत्तों  की  आहट  से,
लगे, आसपास हो तुम l 

कल- कल बहता पानी,
कहे तुम्हारी कहानी,
तो, लगे आसपास हो तुम l 

पंछियों का कोलाहल,
कहे मुझसे हर पल,
कि , आसपास हो तुम l 

फूलों में, कलियों में,
सूने  रास्तों और गलियों में ,
लगे ,आसपास हो तुम l 

जब  आँखें मींची ,
हुई स्वपन में विलुप्त ,
तो तुमने ही कहा,
मेरे ह्रदय में हो तुम l 

01 दिसंबर 2013

दिसंबर

दिसंबर का मौसम इतना सर्द न था,
जब से तुम गए हो इतना दर्द न था l 

पूंछू तुम्हारा पता -
कभी पहाड़ों पे गिरती बर्फ से,
और कभी उनपर तैरते अर्श से l 

सलोनी हवा में बहती -
तुम्हारे वादों कि वफ़ा,
मुझ तक ले आयी है तुम्हारा स्पर्श l 

शायद कभी किसी मोड़ पर तुम मिलो,
और हो जाएं हम -तुम गुम l  

दिसंबर की ठिठुरती सर्दी में,
तुम्हारी यादों कि गर्माहट,
महकाती  मेरे हर पल की आहट l 

25 नवंबर 2013

इक सर्द सुबह


भीनी-भीनी सी खुशबू लिए,
अनगिनत किरणों के जलते दीये ,
मीठा राग गुनगुनाती,
इक सर्द सुबह l 

सफ़ेद आँचल सा लहरा,
अथाह व्योम और सागर गहरा,
छंद - पंक्तियाँ लिखती ,
इक  सर्द सुबह l

पथिक को राह  दिखाती ,
कभी चुप और कभी इतराती,
बस यूँही मुस्कुराती,
इक  सर्द सुबह l 

02 नवंबर 2013

महक


मेरी कविताओं को ,
बिखरने दो हवाओं में ,
शायद तुम तक इनकी महक पहुंचे l
हर पंक्ति को, पंखुरी  समान,
बिछ जाने  दो राहों में,
शायद तुम गुज़रो वहाँ से l 

शब्दों कि गहराई से,
बना यह अथाह सागर,
तुम हो अनमोल मोती l 

यह अनुरोध है मेरा,
थाम लो इस हाथ को,
शायद फिर मेरी कलम से,
शब्दों का समर्पण हो  न  हो l 



07 अक्तूबर 2013

कल रात सिरहाने

कल रात सिरहाने ,
आये थे तुम,
समझी बयार का झोंका  है।

पलक झपकते देखा तुम्हें ,
समझी कोई स्वपन है ।

चाँद की रोशनी में ,
अनगिनत तारों की टिमटिमाहट में ,
तुम्हारा चेहरा सूर्य सामान चमका,
समझी सुबह की किरण हो तुम ।

सपनों की दुनिया अनोखी है ,
कभी लगे सच और कभी धुंध।

पर मैं  जानती हूँ ,
कल रात सिरहाने ,
आये थे तुम।

01 जुलाई 2013

मेरी परी : मेरी बिटिया

  खेल रही थी आकाश में ,
और कभी मेरे एहसास में ,
छन् के आ गयी मेरी बाहों में,
मेरी प्यारी परी  l 

तुम्हारी मुस्कान की आहट ,
है  मेरे जीवन की छन - छनाहट ,
कभी चाँद पर डोलती और कभी इन्द्रधनुष पर ,
मेरी प्यारी परी  l 

टिमटिमाती आँखों में,सपने कई सजे हैं,
छोटे छोटे हाथों में , अनमोल रतन छुपे हैं ,
सवार लूँ खुद को तुमसे,
मेरी प्यारी परी  l 

आओ चलें उस पार,
अनोखी  दुनिया में,
जहाँ मैं सबसे छुपा लूँ   तुम्हें ,
मेरी प्यारी परी  l 

25 जून 2013

उलझन

इस लम्बी उम्र का क्या करूँ?
खींचती ही चली जा रही है l  
बेजान पड़ी उम्मीद,
फिर जी उठी है l 


पलकों पे बोझिल सपने,
सोचा सुला दूँ उन्हें  अब l 
पर सज रहे हैं ,
आने वाले कल के लिए l 


वोह राह जिसे भुला दिया,
बरसों पहले,
मिल गयी वापस एक मोड पे आके l 
अब मुझे बढ़ना है, मंजिल तक पहुँचाना है l 


02 जून 2013

थाम लो


हाथ छूट रहा है हाथों से,
जीवन पर्यन्त साथ निभाना था l 

क्यूँ डूब रहे हो दुविधा में?
आशाओं की कश्ती पर हम सवार थे l 

कैसे विश्वास दिलाऊँ तुम्हे, सब ठीक होगा l 
स्वयं ही बह रही हूँ आशाविहीन सी l 

परन्तु पुनः जागृत होंगे हम,
उभरेंगे इन लहरों की अठखेलियों से ऊपर l 

थाम लो मेरा हाथ , फिर अपने हाथों संग,
चलो चलें वहां, जहाँ है जीवन का हर रंग l 
  

27 मई 2013

तुम


इन राहों पर चलते यूँ लगे शायद  अगले मोड़ पर , तुम खड़े हो।
मुझसे मिलोगे तो कहोगे," कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ।"

पेड़ो के पतों की हर आहट पे लगे,की तुम छुपकर मुझे देख रहे हो।
तुम्हारी नजरें कह रही हो,"देखो मै  यहाँ हूँ।"

गूंज रही  है कानो में तुम्हारी वही  हंसी ठिठोली।
जो कहती है ," मुझ पर भरोसा रखो।"

इस जीवन का अंत होगा जब ,खड़ी  होंगी मै वहां तब।
निहारूंगी तुम्हारी ही बाट , अटूट  बंधन में बंधने का है हमारा साथ।



24 मई 2013

जय शिव शंकर


जय शिव शंकर तुम हो पालनहारी,
तुमसे ही तो  चलती है यह सृष्टि सारी  l 

गंगा को दिया मान,
धर अपने शीश पर दिया सम्मान l 

तुम विषधारी फिर भी हो शुभकारी,
सब जनों के तुम हो अधिकारी l 

नागों का हार गले में तुम्हारे,
मुंडमाला तुम्हें सवारें l 

फिर भी तुम हो मंगलकारी,
इस जग के पालनहारी l 



मेरे सपनों की दुनिया

मेरे सपनों की दुनिया,
है हकीकत से परे ये दुनिया l 

कहीं है फूलों की खुशबू 
कहीं है मधु की महक l 
कहीं है भवरों का गुंजन,
कहीं है चिड़यों  की चहक  l 
कभी तुम्हारा  हाथ है मेरे हाथ में,
कभी मेरा हाथ है तुम्हारे सिराहने l 
कभी तुम कविता लिख रहे हो ,
कभी तुम  गुनगुना रहे हो l 


मेरे सपनों की दुनिया,
है हकीकत से  परे  ये दुनिया l 

18 मई 2013

लेकिन




ज़िन्दगी एक मोड़ पे आके थम सी गयी है ,
ऐसा लगता है जैसे सब कुछ मिलने वाला है ,
लेकिन अभी हाथ खाली हैं।

जमीन से आसमान तक का रास्ता तै करना है,
लेकिन पंख उगाने की कोशिश  अभी जारी  है।

मुझे बहुत दूर, बहुत ऊँचा जाना है ,
लेकिन सफ़र की तयारी  अभी बाकि है,
लेकिन सफ़र की तयारी अभी बाकि है

दर्द


यह दर्द इस दिल का एहसास बन चुका है ,
 हो तोह  ढूँढू  उसे , इतना ख़ास बन चुका है। 

रह , रह कर उठती है टीस इन् जख्मों के बीच ,
क्या सुनुक्या कहूँ , आखिर है वोह क्या चीज़? 

हथेली की लकीरों का, है यह सारा खेल ,
 जाने अब किस जन्म में हो अपना मेल?

जहाँ भी जाओ ख़ुशी तुम्हारे संग हो,
मन में कल कल बहती उमंग हो। 

मेरी लिखी कविताओं का सार हो तुम ,
कुछ मीठी यादों का आभार हो तुम,
और मुझे जो निखार देवोह श्रींगार हो तुम।   



16 मई 2013

नमन

आज तुम्हारी बाँहों में बिखर जाऊँ ,
पिरो लो मुझे इन  गीतों में,
शायद कुछ संवर जाऊं l

अमलताश के फूलों में,
गुलमोहर के झूलों में ,
कुछ मीठी भूलों में,तुम ही तो हो l

भिगोती है तुम्हारी चाहत,
मुझे हर पल पल,
तुमसे ही तो बहता  है मेरा जीवन कल कल l

उम्मीद से सजी है दुनिया मेरी ,
तुम्हारी ही कल्पनाओं से,
नमन है तुम्हें मेरा, इन् कविताओं से l




06 मई 2013

आशा


समझती हूँ मैं तुम्हारी  व्यथा
और दुःख से भीनी हवा l

दूर हो रहे हो जो मुझसे 

खो दूंगी मैं ,खुद को खुद से l

जानती हूँ यह क्षण भर को है,
झड जायेगा पत्ते की तरह l

नयी कोपलें फिर फूटेंगी ,
आशाओं की रुधिर किरणे फिर चमकेंगी l

ठंडी बयार का बहेगा झोंका ,
संग लायेगा खुशियों का झरोखा l

विसर्जित है तुम्हें पूर्ण समर्पण ,
है यह मेरा तन मन अर्पण  l

प्यार की परिभाषा

क्या है प्यार की परिभाषा ?
है यह निरंतर बहती आशा या 
भावनाओं में सिमटी निराशा !

क्यों परे नहीं है ,यह समाज के नियमों से ?

शायद इसलिए कि बंधा है सयंम से या 
विचर सकता है अथाह व्योम में !
कभी थामोगे मेरा हाथ तुम ?
कहते हो यह बंधन अटूट है ,पर,
जुड़ा है किसी ओर के संग !

वचन देता हूँ, अगले जन्म ,

रंग दूंगा , तुम्हें , अपने ही रंग! 

वह

पोह फटने से पहले उठ जाती ,
करती ढेर सारा काम ,
पल भर  भी  जिसको नहीं आराम,
वह गाँव की औरत है।


कपडे धोती बर्तन धोती,
करती  सबकी देखभाल,
कैसे आये आराम का ख्याल,
वह गाँव की औरत है।
खेतीबाड़ी का काम भी करे वोह,
नहीं देखती अपना चैन,
उसको तो करना  काम दिन रैन ,
वह गाँव की औरत है।

पशुओं को भी देती प्यार,
करती है वोह कठोर परिश्रम,
जब तक है उसके दम में दम,
वह गाँव की औरत है।


भीड़


यहाँ  देखो, वहां देखो ,
हर तरफ भीड़  है ,
भीड़  को  ही रोंद्ती ,
कैसी यह भीड़ है ?

सड़क पर, रेलों में ,
सब्जी के ठेलों में,
घर की छतों को तोड़ती ,
ऐसी यह भीड़ है !
घट रहे हैं स्त्रोत भी  ,
बढ़ रहे  हैं लोग जो,
तीर की तरह चीरती ,
देखो यह भीड़ है !

भीड़ पर जो लगे,
लगाम,
तभी देश का हो,
ऊँचा
मकाम !