30 नवंबर 2014

बांवरा मन

लहराती चली है पवन ,
कुछ कह रही है तुझसे यह  मेरे मन,
वह जिसके स्वपन संजोये तूने ,
अब बिफरे - बिफरे पड़े है सूने - सूने

गाता - बहता पानी ,
सुना रहा है उसकी कहानी,
जिस संग डोर बंधी है मन की ,
पर जीवन में है उसी की कमी।

सप्त रंगी धनुष यह ,
जोड़े धरती- आकाश की लय ,
जा उसके साथ तू मन ,
शायद उस ओर  मिले उसका दर्पण।

मन तो बांवरा है ,
विचरे भंवरा बन,
उसकी चाह रखता है ,
जो खो चुका है........................
          इक दर्द बन.…………….......

28 नवंबर 2014

आज भी............

आज भी.……

तुम्हारा चेहरा ,
खिलखिलाता सा,
चहकता सा,
मेरे नयनों में बसा है। 

वह तुम्हारी बातें ,
जो कभी हंसाती ,
कभी रुलाती ,
मेरे कर्णों में गूंजती हैं। 

तुम्हारे स्पर्श के ,
एहसास की ,
भीनी - भीनी खुशबू ,
मेरे मन को महकाती है। 

स्मृतियों की वर्षा ,
पूर्णतयः सरोबार कर, 
तुम्हारी याद दिलाती है। 

स्वपन है , यह तो केवल,
परन्तु सच होने की उम्मीद में ,



आज भी……

मेरे हृदय में तुम्हारी छवि समाई हुई है।