हर पल तुम्हें देखने की,
आदत हो गयी है।
तुम्हारी ही यादों में खो जाने की,
आदत हो गयी है।
बादल और चाँद में तुम्हें ढूंढने की,
आदत हो गयी है।
हर राह , हर मोड़ पर तुम्हें पाने की,
आदत हो गयी है।
कुछ लिखूं या न लिखूं ,
बस तुम्हारे बारे में लिखने की,
आदत हो गयी है।
क्या जाने कोई यह वेदना,
जहाँ तुम पास होकर भी दूर नहीं ,
और दूर होकर भी दूर नहीं।
अब तो बस इस तरह जीने की ,
आदत हो गयी है।
आदत हो गयी है।
तुम्हारी ही यादों में खो जाने की,
आदत हो गयी है।
बादल और चाँद में तुम्हें ढूंढने की,
आदत हो गयी है।
हर राह , हर मोड़ पर तुम्हें पाने की,
आदत हो गयी है।
कुछ लिखूं या न लिखूं ,
बस तुम्हारे बारे में लिखने की,
आदत हो गयी है।
क्या जाने कोई यह वेदना,
जहाँ तुम पास होकर भी दूर नहीं ,
और दूर होकर भी दूर नहीं।
अब तो बस इस तरह जीने की ,
आदत हो गयी है।