17 अगस्त 2021

जीवन प्रवाह

नदी की धारा बहती,
उन्मुक्त,
पंछी,तितलियाँ,भँवरें,
 उड़े भय-मुक्त। 

सागर लहराता मचल-मचल, 
है हिमालय स्थिर,
अविचल। 

समस्त जीवन प्रवाह बहे,
अविरत,
 क्योंकि उन्हें है,
विश्वास प्रभु पर।

ll "ओम् तत् सत्,ओम् तत् सत्" ll 

16 अगस्त 2021

कुछ प्रश्न

क्या कभी मेरे हृदय की पीड़ा,
तुम समझ पाओगे?
और यदि समझ गए तो,
क्या उसे पुष्प की तरह सहलाओगे?
 
            मेरे अन्तःमन की वेदना,
            क्या तुम पढ़ सकते हो
            और यदि पढ़ सके तो,
            इसे कोई मधुर गीत सुनाओगे?
 
क्या इस कोलाहल के,
तुम तक तार पहुंचते हैं?
और यदि पहुंच गए तो,
क्या प्रशांत बन,उसको शांत करवाओगे ?
 
           यही कुछ प्रश्न हैं मेरे,
           क्या इनका उत्तर,
           तुम मुझको दे पाओगे? 

15 अगस्त 2021

गूंजने दो विजयी नारा

उठा लो हाथ में ध्वजा,
है पूरा भारतवर्ष सजा  । 

गूंजने दो विजयी नारा,
आज है पर्व हमारा। 

न जाने कितना लहू बहा,
कितना कुछ सभी ने सहा। 

आज हम स्वतंत्र हैं,
पर मन में कई प्रश्न हैं। 

है यही आशा आज की,
भ्रष्टाचार,जातिवाद,
धर्म पर अपवाद,
सब हो जाएं समाप्त यह विवाद। 


09 अगस्त 2021

हे! भोले अब ना आना

कण -कण छलकती मिट्टी माटी,
उड़ती बयार संग रेत मरुस्थल की,
आंधी तूफ़ान बहते पल - पल,
पिघलता मद्धम - मद्धम हिमनद,
और उफनता समुद्र थर - थर।

यह खनक जलवायु परिवर्तन से ,
ज्यों हलाहल छलके, बूँद बूँद बर्तन से।

हे! भोले अब ना आना,
इस हलाहल को न समाना,
मनुष्य को अब न बचाना,
भस्म हो जाने दो मनुष्य जाती को,
इस  हलाहल की अग्नि में।