02 नवंबर 2013

महक


मेरी कविताओं को ,
बिखरने दो हवाओं में ,
शायद तुम तक इनकी महक पहुंचे l
हर पंक्ति को, पंखुरी  समान,
बिछ जाने  दो राहों में,
शायद तुम गुज़रो वहाँ से l 

शब्दों कि गहराई से,
बना यह अथाह सागर,
तुम हो अनमोल मोती l 

यह अनुरोध है मेरा,
थाम लो इस हाथ को,
शायद फिर मेरी कलम से,
शब्दों का समर्पण हो  न  हो l 



1 टिप्पणी:

आभार है मेरा