05 सितंबर 2018

रूठे -रूठे

काले आसमान के बदल,
बारिश से टूटे - टूटे से हैं,
जाने क्यों लगे कि,
मेरे कुछ अपने,
मुझसे रूठे -रूठे से हैं। 

वह बातें, वह वादे,
अब झूठे -झूठे से हैं,
क्या मेरे कुछ अपने,
मुझसे रूठे -रूठे से हैं ?

जीवन के सुनहरे सपने,
सिमटे-सिमटे,घुटे -घुटे से हैं,
शायद मेरे कुछ अपने,
मुझसे रूठे-रूठे से हैं। 

तस्वीर जो संजोई थी दीवार पर,
उसके कांच आज फूटे -फूटे से हैं,
हाँ, मेरे कुछ अपने,
 मुझसे रूठे-रूठे से हैं।  

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आभार है मेरा