02 जून 2013

थाम लो


हाथ छूट रहा है हाथों से,
जीवन पर्यन्त साथ निभाना था l 

क्यूँ डूब रहे हो दुविधा में?
आशाओं की कश्ती पर हम सवार थे l 

कैसे विश्वास दिलाऊँ तुम्हे, सब ठीक होगा l 
स्वयं ही बह रही हूँ आशाविहीन सी l 

परन्तु पुनः जागृत होंगे हम,
उभरेंगे इन लहरों की अठखेलियों से ऊपर l 

थाम लो मेरा हाथ , फिर अपने हाथों संग,
चलो चलें वहां, जहाँ है जीवन का हर रंग l 
  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आभार है मेरा