25 जून 2013

उलझन

इस लम्बी उम्र का क्या करूँ?
खींचती ही चली जा रही है l  
बेजान पड़ी उम्मीद,
फिर जी उठी है l 


पलकों पे बोझिल सपने,
सोचा सुला दूँ उन्हें  अब l 
पर सज रहे हैं ,
आने वाले कल के लिए l 


वोह राह जिसे भुला दिया,
बरसों पहले,
मिल गयी वापस एक मोड पे आके l 
अब मुझे बढ़ना है, मंजिल तक पहुँचाना है l 


1 टिप्पणी:

आभार है मेरा