30 नवंबर 2014

बांवरा मन

लहराती चली है पवन ,
कुछ कह रही है तुझसे यह  मेरे मन,
वह जिसके स्वपन संजोये तूने ,
अब बिफरे - बिफरे पड़े है सूने - सूने

गाता - बहता पानी ,
सुना रहा है उसकी कहानी,
जिस संग डोर बंधी है मन की ,
पर जीवन में है उसी की कमी।

सप्त रंगी धनुष यह ,
जोड़े धरती- आकाश की लय ,
जा उसके साथ तू मन ,
शायद उस ओर  मिले उसका दर्पण।

मन तो बांवरा है ,
विचरे भंवरा बन,
उसकी चाह रखता है ,
जो खो चुका है........................
          इक दर्द बन.…………….......

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आभार है मेरा