08 जनवरी 2015

अगर .........

अगर मैं पुष्प होती ,
तो तुम्हारी राहों में बिछ जाती ,
मेरी सुगंध बस तुम तक ही आती। 

अगर मैं अश्रु होती ,
तो तुम्हारे नयनों से ख़ुशी बन छलकती ,
सर्वस्व तुम्हारी ही प्रसन्नता बन दमकती। 

अगर मैं ब्यार होती ,
तो प्राणवायु बन तुम्हें सहलाती ,
जहाँ भी जाते तुम्हारा साथ मैं पाती। 

अगर मैं धरा होती ,
तो तुम  आसमान का काजल ,
मुझ पर बरस जाते तुम बन बादल। 

अगर मैं वंदना होती ,
तो तुम्हारा ही गुणगान गाती ,
धैर्य और सयंम से तुम्हें सजाती।

अगर मैं नदिया होती ,
तो तुम मेरे प्रशांत ,
तुम में ही समां जाते मेरे दिन - रैन।  

1 टिप्पणी:

आभार है मेरा