26 मई 2015

क्या कभी ?

क्या कभी इंसान,
माप सकेगा एक बच्चे के, 
होंठों की मुस्कान ?

पहुँच चुका है इंसान,
चाँद , मंगल और गगन अविराम,
पर क्या कभी पहुंचेगा,
सच की गहराई में उसका विमान ?

बना रहे हैं आज हम ,
ऊँची -ऊँची ईमारतें,
बाँध रहें हैं दरिया का प्रवाह।

पर कब बांधेंगे हम,
समाज की खोखली जड़ों का प्रभाव ?
क्या कभी दुनिया पुनः ,
बनेगी सुख का परिणाम ?




1 टिप्पणी:

आभार है मेरा