04 जून 2015

पृथ्वी की धुरी

चिर काल से निरंतर चल रही है,
एक ही समय चक्र की ताल पे,
कभी न रुके , कभी न सोये,
चलती रहे एक ही ताल पे। 

 ब्रह्मांड की कुंडलियों में,
असंख्य तारों के झुरमुटों में,
छिपी है इसकी कहानी,जो कहती है सबसे,
कि चल रही है धरा एक ही ताल पे। 



सौरमंडल चमकता है,
सूर्य के प्रकाश से,
जीवन की धारा बहती है पृथ्वी के प्रवाह से,
और चल रही है यह एक ही ताल पे। 

कहते हैं नीली चादर सी बिछी हुई,
दिखती है ब्रह्माण्ड से,
प्रकृती की गोद समाई  है इसी पर,
चल रही है जो एक ही ताल पे। 

2 टिप्‍पणियां:

आभार है मेरा