17 अगस्त 2021

जीवन प्रवाह

नदी की धारा बहती,
उन्मुक्त,
पंछी,तितलियाँ,भँवरें,
 उड़े भय-मुक्त। 

सागर लहराता मचल-मचल, 
है हिमालय स्थिर,
अविचल। 

समस्त जीवन प्रवाह बहे,
अविरत,
 क्योंकि उन्हें है,
विश्वास प्रभु पर।

ll "ओम् तत् सत्,ओम् तत् सत्" ll 

4 टिप्‍पणियां:

आभार है मेरा