27 जून 2015

नीलकंठ त्रिपुरारी


नीलकंठ त्रिपुरारी,
तेरी छवि निराली।

त्रिशूल हाथ में धरा,
हरे सबकी व्यथा।

गंगा को लपेटे,
कष्ट सभी के पी लेते। 

सर्प माला से सुसज्जित,
करते सभी का हित्त। 

नंदी की है सवारी,
समग्र सृष्टि तुम्हें प्यारी। 

मुण्डमाल की लड़ियाँ,
मुक्त करें मोहमाया की कड़ियाँ। 

चंदा का आभूषण,
चमके  हर क्षण - क्षण। 

शक्ति है अर्धांगिनी,
सदैव आपकी संगिनी। 

नीलकंठ त्रिपुरारी,
तेरी छवि निराली।


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आभार है मेरा