06 मई 2013

भीड़


यहाँ  देखो, वहां देखो ,
हर तरफ भीड़  है ,
भीड़  को  ही रोंद्ती ,
कैसी यह भीड़ है ?

सड़क पर, रेलों में ,
सब्जी के ठेलों में,
घर की छतों को तोड़ती ,
ऐसी यह भीड़ है !
घट रहे हैं स्त्रोत भी  ,
बढ़ रहे  हैं लोग जो,
तीर की तरह चीरती ,
देखो यह भीड़ है !

भीड़ पर जो लगे,
लगाम,
तभी देश का हो,
ऊँचा
मकाम !



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आभार है मेरा